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वेदना-वर्णन (Essay) : एक सच्चे भारतीय शिक्षक की व्यथा l
Image-credit : From an article published by India today.
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आज मैंने मन को बेहद भावुक करनेवाले समाचार पढ़े, जिसका फोटो इस निबंध के कवर में मैंने अपलोड किया है l

बात भारत के किसी राज्य के एक वरिष्ठ-दर्जे के शिक्षक की है, जो की गंभीर रूप से बीमार थे और अपनी मृत्युशय्या (hospital bed) में अपने अंतिम-श्वास ले रहे थे l

लेकिन उनके शरीर में पूर्ण रूप में सक्षमता न होने के बावजूद भी वे अपने लेपटॉप-कोप्यूटर में अपने विधार्थियो के ऐसाईंमेंट्स चेक करते रहे और अगले हीं दिन उनका अवसान हो गया l

यह सिर्फ एक उदाहरण है, विशाल जन-संख्या वाले भारत देश में छिपे ऐसे आदर्शवान, प्रेरणा-पात्र शिक्षकों का l

लेकिन आज के लगभग हर ईमानदर, कर्मशील और आर्थिक रूप से लाचार भारतीय नागरिक की ये हीं व्यथा है की उनकी अपने कर्म के प्रति सच्ची निष्ठा और देश के प्रति सेवा कभी पहचाने नहीं जाते और ऐसे मोती व हीरे जैसे भारतीय सज्जनो को उनके हिस्सा का मान-सम्मान नहीं मिलता l

वही दूसरी तरफ कही-सारे लुच्चे, दंभी, बेईमान, और धाक-धमकी करने वाले लोगो की इस देश में हर जगह से वाह-वाही होती रहती है, सिर्फ इसलिए क्योंकि ऐसे लोग आर्थिकरूप से बेहद स्मृद्ध है और इन सब के पास भयावह मात्रा में सत्ता और वर्चस्व है l

बात अगर भारत के शिक्षको की करे तो, इनकी दुर्दशा पुरे देश में कुप्रसिद्ध है, फिर भी हरकोई चुपी सांधे हुए है l

आज की बिगड़ी हुई नई-पीढ़ी (younger generation) ऐसे सच्चे भारतीय शिक्षको का मजाक उड़ाते रहते है, तो वही उनके माँ-बाप की तरफ से भी इन शिक्षको को आए-दिन गालियां हीं सुनने को मिलती है l

और भारत में लगभग सभी ईमानदार शिक्षक अपनी शारीरिक-मानसिक क्षमता से चार-गुना काम करने के बावजूद, इन्हे अपने हिस्से का वेतन ठीक से नहीं मिलता l

हा, में यह भी मानता हु की भारत में बोहोत सारे ऐसे भी शिक्षक है जिनकी तनख़्वाह ज्यादा होने के पश्चात वे अपनी जिम्मेदारी ढंग से नहीं निभाते l

लेकिन ऐसे अनगिनत दुष्ट,आलसी और भ्रष्ट शिक्षको के कारण आज भारत के गिने-चुने ईमानदार को अन्याय जेलना पड़ता है, और आखिर में इन्हे आर्थिक-तंगी में हीं अपनी जान गवानी पड़ती है l

सही मायने में आज के भारत देश में ईमानदार होना, और समाज व देश के प्रति प्रेम, सेवा-भाव और जागृति दिखाना मानो कोई गुनाह करने जैसा बनता जा रहा है, वहीं निर्दोष-लोगो के साथ होशीयारी करना, दबँगई दिखाना, अपने से दुर्बल का मजाक उड़ाना और नफ़रत फैलाने का मानो रिवाज-सा बनता जा रहा है l

एक काल था ज़ब गुरु को जिस देश में भगवान माना जाता था क्योंकि एक गुरु देश के भविष्य समान नई-पीढ़ी को सच्ची दिशा में ढालता है, लेकिन आज गुरु का नकाब पहने हुए चंद दरिंदे और ढोंगी-पांखंडी हीं इस देश में गुरु भी है और भगवान भी है, और जो बचें-कुँचे नैतिक, आदर्श-प्रेमी गुरु है वे सब लाचार होके गुमनामी में मानो सब कुछ जेल रहे है, और अपने मरने का इंतजार कर रहे है l

© Kishan Trivedi

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