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घातक तंत्र
वो एक जंगली पहाड़ी इलाका था एक ढंकी छुपि सी बस्ती वहां के रिती रिवाज जैसें कि इलाकों में होता है उसी तरह ही था बलवान ,ओझा तांत्रिक, ज्ञानी, काली विद्या के जानकार अपने अपने बल प्रदर्शन के बल पर पूरी बस्ती पर अपना वर्चस्व कायम करने के लिए मौका ढुंढते रहते हैं
वहां का सरदार यूं तो बल में तेज तर्रार पूरी बस्ती को संभालने का माद्दा रखता था किन्तु जहां ओझा गुनिया तांत्रिक सामने आते वह उनके पैरों में गिर जाता था और न गलती किते गये अपराध की क्षमा मांगने लगता था
उसी बस्ती का बनसिट्टा एक काली विद्या का माहीर जानकार था और मौके बेमौके अपनी धौंस जमाने से नहीं चूकता था
आज फिर बनसिट्टा एक भयंकर प्रयोग उस सरदार को खत्म करने के लिए कर रहा था वह एक पहाड़ी गुफा के अंदर एक मूर्ति के समक्ष एक पीतल की बड़ी थाल में तीन कोनों में तीन दिए न जाने किस तेल अथवा चर्बी कहा जाये जो की तीव्र गंध उत्पन्न कर रही थी जलाकर किसी प्रकार का तांत्रिक प्रयोग कर रहा था जब वह मंत्रों को तीव्र रूप से उच्चारण करता उसका शरीर बेतरह उछलने लगता तथा धीरे धीरे वह शांत होता इसी क्रम को वह बार बार दोहराता अंततः एक समय ऐसा आया कि थाल के तीनों दिए की लौ विचित्र ढंग से फड़कने जलने लगी शायद वह उस तांत्रिक से कुछ बातें कर रहीं थी
बनसिट्टा ने थाल में फड़कते दिए के ढंग को देखा और जोरों के साथ किसी मंत्र को बोलने लगा जैसे जैसे मंत्र पूर्ण हो रहा था वह थाल किसी चक्र की तरह अपने आप ही घुमने लगा मंत्र पूर्ण होने के साथ ही वह थाल बहूत ज्यादा वेग से घुमाता हुआ बनसिट्टा के आंखों के सामने आ गया
एक परिवर्तन उस थाल के साथ यह हुआ कि जाने किस तरह से उस थाल के चारों तरफ एक हाथ लंबी तेज धार की छुरियां निकल आई थी जो थाल की गति के साथ तेजी से घुम रही थी वह थाल एक शक्तिशाली अस्त्र का रूप ले चुकी थी बनसिट्टा के मुंह से हर्ष भरी एक चित्कार निकली
और वह उस थाल से कुछ कहने लगा अपनी बात पूरी कर वह एक भयंकर अट्टहास लगा उठा और गुफ़ा के मुहाने की तरफ हाथ की ऊंगली से इशारा कर दिया उसके इशारा करते ही वह थाल जिसमें तीन दिये जल रहे थे जिन पर थाल की घुमने की
गति का कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा था एक तेज घातक अग्निचक्र सा वह अस्त्र तेजी से गुफ़ा के मुहाने से बाहर चला गया
बस्ती का सरदार रात में अपने घर में अपनी औरत के साथ बस्ती की समस्याओं के बारे में कुछ बातें कर रहा था तभी दरवाजे पर कोई आहट आई खट खट करता झोपड़ा गूंज उठा सरदार उठ कर दरवाजा खोल दिया दरवाजा खुलते ही उसके मुंह से जोरों की चीख निकल गई सामने वही थाल सामने हवा में तैरता गोल गोल घुम रहा था जिसमें जलते दिए की तेज लौ पर हवाओं का कोई असर नहीं हो रहा था सरदार की चीख सुनकर उसकी औरत भी बाहर निकल आई और जो दृष्य़ सामने देखा तो देखकर जड़वत खड़ी रह गई पलक झपकते ही उस थाल के घुमाते छुरियां सरदार का सर काट चुकी थीं किन्तु सरदार का सिर नीचे न गिरकर थाल में दिख रहा था तथा जो खून निकल रहा था जाने कैसे उस थाल से गायब होता जा रहा था वह थाल सरदार के सिर से निकल रहे खून को पी रही थी और तेजी से एक तरफ चली गई सरदार की औरत डरकर बेहोश हो चुकी थी
उधर थाल बनसिट्टा के सामने पहूंच अपने स्थान में जा कर रूक गई थी और तीनों दिए उसके रूकने के साथ ही भभक कर बुझ गए थे बनसिट्टा पागलों की तरह बहूत देर तक हंसता रहा बाद में उस सरदार के सर को ले जा कर एक रस्सी से पिरो कर उस मूर्ति को पहना दिया अब मेरे सामने कोई बस्ती के लोग बदमाशी नहीं कर सकते और बस्ती में मैं राज करूंगा साली उसकी औरत मेरे सामने बड़ी डींगे हांक रही थी आज अभी जाकर उसकी सारी अकड़ निकालूंगा बड़बड़ाता हुआ तेजी के साथ बाहर निकला और गुफ़ा का मूंह बंद कर सरदार के घर चला गया सरदार का घर खुला था और औरत बेहोश थी बनसिट्टा ने झोंपड़े का दरवाजा बंद किया और औरत को उठा कर बिस्तर पर लेटा कर उसे भंभोड़ने लगा इसी बीच औरत को होश आ चुका था मगर वह चुपचाप पड़ी रही
भरपूर मजा लेने के बाद बनसिट्टा ने औरत को अच्छी तरह धमका दिया और मुंह बंद रखने को समझा दिया ....।

© सुशील पवार