वो फ़ोन
#रॉन्गनंबर
बड़ी ज़ोर की बारिश हो रही थी। आसमान में बिजली कड़कड़ा रही थी पर घर पर बिजली गुल थी। तभी फोन की घंटी बजी और जीत ने रिसीवर उठा के कहा हैलो, कौन है? उधर से आवाज़ आई ओह, सॉरी, रॉन्ग नंबर, और फोन रख दिया गया। जीत को दो साल पहले की वो तूफानी रात याद आ गई। उस दिन भी तो... इसी जैसे एक अनजान सा फ़ोन आया था
वो लगातार फोन करता रहा है एक हिम्मत करके मैंने अपनी धीमी सी आवाज़ में आप कौन हैं
मैं जीत हूं मैं शाम ढले फ़ोन करता हूं आप फोन रख देती हों हमें आपसे ढ़ेर सारी बातें करनी हैं हम अनजान नहीं है बड़ी मुश्किल से नंबर मिला था आप का , चलों बताएं आप कैसे हो, मुझे कुछ याद नहीं आ रहा है फिर मैंने बातें की, फिर रोज़ाना बातें होती है मगर पहले कहां मिले हमें याद नहीं आ रहा था अब हम उससे पूछ नहीं सकते हैं समय बीतता गया एक दिन पूराने कुछ सामान में एक ख़त मिला, पिता की किताब थी हमने ख़त खोला और पढ़ा, मैं आपकी बेटी को पसंद करता हूं मुझे उनसे शादी करनी है
आप की इंतज़ार रहेगा,तब मुझे कुछ याद आने लगा, जीत हमारी पिता की दूकान में चाय पीने आया करता था और मैंने कई बार देखा पर, कुछ बात नहीं हुई,वह रोज़ पिता से ढेरों बातें करता था फिर अचानक चला गया था मैंने पूछा था पिता जी को उन्होंने हर बार टाल दिया,अब पूरी बातें समझ आने लगी,बस मन कुछ थम सा गया और आज़ के फोन का इंतजार करने लगी।
बड़ी ज़ोर की बारिश हो रही थी। आसमान में बिजली कड़कड़ा रही थी पर घर पर बिजली गुल थी। तभी फोन की घंटी बजी और जीत ने रिसीवर उठा के कहा हैलो, कौन है? उधर से आवाज़ आई ओह, सॉरी, रॉन्ग नंबर, और फोन रख दिया गया। जीत को दो साल पहले की वो तूफानी रात याद आ गई। उस दिन भी तो... इसी जैसे एक अनजान सा फ़ोन आया था
वो लगातार फोन करता रहा है एक हिम्मत करके मैंने अपनी धीमी सी आवाज़ में आप कौन हैं
मैं जीत हूं मैं शाम ढले फ़ोन करता हूं आप फोन रख देती हों हमें आपसे ढ़ेर सारी बातें करनी हैं हम अनजान नहीं है बड़ी मुश्किल से नंबर मिला था आप का , चलों बताएं आप कैसे हो, मुझे कुछ याद नहीं आ रहा है फिर मैंने बातें की, फिर रोज़ाना बातें होती है मगर पहले कहां मिले हमें याद नहीं आ रहा था अब हम उससे पूछ नहीं सकते हैं समय बीतता गया एक दिन पूराने कुछ सामान में एक ख़त मिला, पिता की किताब थी हमने ख़त खोला और पढ़ा, मैं आपकी बेटी को पसंद करता हूं मुझे उनसे शादी करनी है
आप की इंतज़ार रहेगा,तब मुझे कुछ याद आने लगा, जीत हमारी पिता की दूकान में चाय पीने आया करता था और मैंने कई बार देखा पर, कुछ बात नहीं हुई,वह रोज़ पिता से ढेरों बातें करता था फिर अचानक चला गया था मैंने पूछा था पिता जी को उन्होंने हर बार टाल दिया,अब पूरी बातें समझ आने लगी,बस मन कुछ थम सा गया और आज़ के फोन का इंतजार करने लगी।