...

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स्त्री
एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को जन्म देने वाली एक स्त्री होती है
वहीं एक बेटी के जन्म उसे यातनाएं दीं जाती है
एक स्त्री पालन - पोषण करती है उस बच्चे का
जों इक दिन किसी के अस्तित्व को बेरहमी से
मिटाने की कोशिश करता है
ना जाने क्यूं होता है
ऐसा इस समाज में त्रिदेवियों का पूजन करने वाला घर की लक्ष्मी से बेरूखी रखता है
वो कोशिश करतीं हैं हर पल
झुककर अपनों से जुड़े रहने की, खुशियां बनाए रखने की
फ़िर ना जाने क्यूं सबकी खुशियों का ख़्याल रखने वाली तनहाई में चुपके से रोती है
वो कोशिश करतीं हैं सबकों इक डोर में रखने की बस इसी चाह में वो पीछे रह जातीं हैं
सबके सपनों में खुद को उन सपनों का हिस्सा समझने वाली
हकीकत से वाकिफ होने पर खुद को खो देती है
इस समाज का सृजन करने वाली
ना जाने क्यूं खुद का अंत कर लेती है


© पलक शर्मा

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