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श्लोक
कामधेनुगुणा विद्या हायकाले फलदायिनी।
प्रवासे मातृसदृशी विद्या गुप्तं धनं स्मृतम्।।

श्लोक का अर्थ :
विद्या में कामधेनु के गुण होते हैं। उससे असमय में ही फलों की प्राप्ति होती है। विदेश में विद्या ही माता की समान रक्षा और कल्याण करती है, इसलिए विद्या को गुप्तधन कहा गया है।

श्लोक का भावार्थ :
गुप्तधन वह होता है जिससे मनुष्य संकट के समय लाभ उठा सके। इसलिए चाणक्य ने विद्या को गुप्तधन बताया है और उसकी उपमा कामधेनु से की है। कामधेनु उसे कहा जाता है, जिससे मनुष्य की सभी इच्छाएं पूर्ण होती है। उससे उस समय भी फलों की प्राप्ति होती हैं, जब देशकाल के अनुसार फल प्राप्ति संभव न हो। विद्या के कारण ही विदेश में व्यक्ति का सम्मान होता है। माता जिस प्रकार बच्चे की रक्षा करती है, उसी प्रकार विदेश में विद्या से व्यक्ति की हर प्रकार से रक्षा होती है और सुख प्राप्त होते हैं। नीति वाक्य में भी है - विद्वान सर्वत्र पूज्यते।