...

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मोहब्बत इबादत है...! (part -1)

Trin…..triiin…trin..triiin……फोन की रिंग हुइ
कायनात बेटा ज़रा देखना तो फ़ोन किसका है ?
अब्बू की आवाज़ सुनी और कायनात सारा काम छोड़ कर भागी चली गई फ़ोन उठाने...
ऊपर वाले कमरे से नीचे आते वक्त वही आवाज़ सुनाई दी जो घर में दिन भर सबको सुनाई देती है...
छम... छम...छम...!!
कायनात की पायल की आवाज़...

कायनात जितनी ख़ूबसूरत थी उतनी ही दिल की खुशमिजाज़ भी थी। जहां जाती सबको अपना दोस्त बना लेती। काॅलेज में पढ़ती थी और तीसरा साल था कायनात का काॅलज में। वैसे तो बहुत सारी दोसतें थी पर इक ख़ास दोस्त थी कायनात की वो थी सना..। दोनों हर वक्त बातें ही करते रहती थी, ना जाने क्या बातें करती थी। लड़कीयों की बातें भी ना कभी पूरी नहीं होती हैं। जल्दी जल्दी आते हुए फ़ोन की रिंग पूरी होने से पहले ही फ़ोन उठा लिया।
“hello.. कायनात"
"जी बोल रही हूं"
"आप कौन"?
"जी वो फिर कभी बताऊंगी फिलहाल ये बताना था कि आप सना के साथ ज़्यादा ना रहा करें। वो लड़की ठीक नहीं है"
और फ़ोन कट हो गया।
कायनात के कुछ समझ में नहीं आया सौ सवाल ज़हन में उठ रहे थे।
वो कौन थी? और ऐसा क्यूं कहा? कुछ समय ना आया और उसने मेरी दोस्त के बारे में क्यूं कहा? ख़ैर इस कश्मकश में ही कायनात काॅलेज चली गई और सना से मिलते ही सब बता दिया। सना भी कुछ समझ नहीं पाई। काॅलेज से घर आ गई पर अभी तक कश्मकश में थी।
शाम को फिर से फ़ोन की रिंग हुई।कायनात ने जल्दी से फ़ोन उठाया ।
“hello कायनात…??
जी बोल रही हूं
"जी.. मैं आलिया बोल रही हूं... माफ़ करना सुबह मैंने आपकी दोस्त के बारे में ग़लत बोल दिया"।
"sorry ji….”
"पर आप मुझे और मेरी दोस्त को कैसे जानती हो"?
"मैं तो नहीं जानती आपको "?
"जी आप नहीं जानती मुझे लेकिन मैं आपके बारे में बहोत कुछ जानती हूं "
"पर आप कैसे जानती हैं"?
"फिर कभी बताऊंगी... अभी फ़ोन रखती हूं.."
"अल्लाह हाफ़िज़"
और फ़ोन कट गया।

(wait for next part)