...

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आशा
एक परिवार में एक पति पत्नी और उनकी एक बेटी थी।
माता-पिता के बीच रोज़ झगड़ा होता था।
वे दोनों छोटी छोटी बातों को लेकर हर वक्त
झगड़ते थे।
उनकी लड़की का नाम था आशा।
धीर धीरे वह बड़ी होती गई और अकेलापन
महसूस करने लगी।हर वक्त गुम शुम रहने
लगी।
दोस्तों के संग खेलना बंद कर दी। पढ़ाई में मन
नहीं रहता था। सोचने लगी क्या करें, कैसे
माता-पिता के बीच का झगड़ा खत्म करें।
कोई किनारा नहीं मिल रहा था।
एक दिन शाम को माता-पिता नहीं थे।
लाइट नहीं था तो उसने चार मोमबत्ती जला
दिया। वहीं बैठकर मोमबत्तियों के साथ बात
करने लगी।
कहने लगी दोस्त बताओ क्या करें कि सब ठीक हो जाए।
अचानक एक मोमबत्ती बूत गया।वह पूछी
तुम क्यों बूत गये हो?
मोमबत्ती ने कहा मैं शांति हूं। जहां झगड़ा वहां
मैं नहीं रहती।
फिर दूसरा मोमबत्ती भी बूत गया ।
बताया मैं विश्वास हूं। जहां शांति नहीं मैं भी
नहीं।
फिर तीसरा बूता। कहा मैं प्यार हूं।
जहां झगड़ा शांति नहीं, विश्वास नहीं मैं
भी नहीं।
लड़की ने चौथे मोमबत्ती से पूछा तुम क्यों
नहीं बूत रहे हो।
मोमबत्ती ने कहा मैं आशा हूं। अगर थोड़ी सी
आशा है तो कोशिश करने से धीरे धीरे सबकुछ
ठीक होने की संभावना है।
लड़की ने सोचा अरे मैं तो आशा हूं। अगर मैं
कोशिश करूं तो सबकुछ ठीक हो सकता है।
वह जमीन पर ऐसे लेट गई जैसे मर गई हो।
माता-पिता लोटे। दोनों ही अपनी बच्ची को
उस हालत में देखा चीख चीखकर रोने लगे।
एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप करने लगे।
फिर डाक्टर आए। जांच किए।देखें सबकुछ ठीक है। लड़की होश में है।समझ गये कि मामला गड़बड़ है।
डाक्टर ने माता-पिता से कहा बाहर जाईए
हमें अकेले मेंच ेचेक करना है। फिर अकेले मे
लड़की से पूछा क्या बात है बेटी। लड़की ने सबकुछ बता दिया। और उनकी मदद मांगी ।
फिर डाक्टर ने माता-पिता को बुलाकर कहा
मैं सूई दे देता हूं । धीरे धीरे ठीक हो जायेगी।
मगर ख्याल रहे घर में एक दम चिल्ला चिल्ली
न हो। फिर से बेहोश होने पर बचाया नहीं जा सकेगा।
माता-पिता बोले हमलोग अपनी बेटी को
पाने के लिए सबकुछ करेंगे।
फिर लड़की होश में आई। माता-पिता उसे
गले से लगा लिया।
उसके बाद फिर कभी झगड़ा नहीं हुआ।
शांति, विश्वास और प्यार लौटकर आए।
सभी खुशी से रहने लगे।
जहां चाह वहीं राह।