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अनामिका....
रिमझिम कहानी- वो रात और बरसात


**आज पूरे एक वर्ष बाद आनंद अपने गाँव आया था।
जब से एक बार उच्च शिक्षा के लिए घर से दूर शहर के महाविद्यालय में दाखिला लिया था, बस किताबें और छात्रावास का जीवन ही उसका नित्यकर्म हो गया था।
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"आज मगर उसके मन में किसी के प्रति अलग ही भावना ने जन्म ले लिया था।"
सावन के महीने में बेतहाशा बरसते पानी में गाँव की कच्ची-पक्की सड़क पर भीगते हुए अपने मन में गाँव की यादों के प्रति आंनदित होते हुए, निरंतर आगे बढ़ते आनंद को इस बात का तनिक भी आभास तक नहीं था कि ये बाहर होने वाली वो बारिश, उसके अंतर्मन की सदा की कहानी बन जाएगी।
ऐसे कहानी जिसका प्रभाव और वेग इस आकाशीय वर्षा से कहीं अधिक और प्रबल होगी।
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अभी वह घर के पड़ोस में ही रुका था।
"आते ही पड़ोस में भाभी ने कहा," अरे! कितना भीग गए हो चलो, पोछ कर फिर खाना लगा देती हूँ।"
खाना खाते हुए भाभी ने बताया,"की अनामिका भी कल ही आयी है।
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अचानक खाते हुए आनंद का हाथ वही रुक गया, वह बोला" पहले क्यूँ नहीं बताया, इतनी देर बेकार हो गए।

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हाथ धुलते हुए आनंद से भाभी बोली, अरे! बारिश तो रुकने दो, मगर आनंद ने जैसे सुना ही न हो। कच्ची मेड़ पर बरसते पानी में फिसलन से बचते हुए वो घर पहुँचा, तो उसकी अपनी भाभी ने उसे बिठाया, हाल-चाल पूछने लगी।
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मगर आनंद तो कुछ और ही ढूंढ रहा था।
वह झट से बोला भाभी'" अनामिका कहाँ है, दिख नहीं रही,
भाभी मुस्कुराने लगी बोली खुद ही ढूंढ लो मुझे क्या पता?
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अनामिका भाभी की छोटी बहन थी, और आनंद की बहुत अच्छी दोस्त भी।
हालांकि वह आनंद से उम्र में बड़ी थी, और तो और आनंद ने उसे पहले कभी देखा भी नहीं था, बस फ़ोन पर ही बात की थी।
आज उससे मिलने की इच्छा बलवती हो उठी थी।
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काफी समय बीत गया, धीरे-धीरे शाम हो आयी, मगर अनामिका का पता नहीं था।
थके होने के कारण आनंद जल्दी ही रात को सो गया।
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लगभग रात को 11 बजे जब सब सो रहे थे, उसे अपने माथे पर किसी स्पर्श का अनुभव हुआ, उसने आँखें खोली
अनामिका उसके सामने बैठी मुस्कुरा रही थी।
बोली बहुत इन्तज़ार किया न?
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आनंद ने कहा, कहाँ चली गई थी, तब वह बोली बगल के गाँव में जो दीदी हैं उनके घर मिलने गई थी, तेज़ बारिश की वजह से देर हो गई।
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और आनंद अनामिका को बस देखता ही रहा, कितनी सुंदर और नाजुक सी थी वो, उसकी अनजानी दोस्त, जो अब अनजानी नहीं रही, और शायद सिर्फ दोस्त भी नहीं रही।
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एक तरह का खिंचाव दोनों ने ही अनुभव किया था।
अनामिका वही पास में चारपाई डालकर आनंद के पास लेटे हुए दुनिया भर की बातें करने लगे।
कब एकदूसरे के हाथ हाथों में आये पता ही नहीं चला,
उसकी बातें जो सिर्फ उन तक पहुँच कर बाहर हो रही बारिश के रिमझिम की आवाज़ में खो जाती थी।
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एक अलग ही एहसास अलग ही अनुभूति।
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हर किसी की तरह आनंद को भी यकीं हो चला था कि ये सच्चा प्रेम है, परंतु हर किसी की तरह उसे भी जीवन ने अनुभव दिया कि, "वास्तव में प्रेम और आकर्षण के मध्य बहुत ही बारीक सी लकीर होती है, जो दोनो में भेद को बखूबी छिपा लेती है।"
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बरसात की वो रात तो बीत गई, वर्षों पहले मगर दे गई आनंद के जीवन में उसकी आँखों से मन में कभी न ख़त्म होने वाली वो बरसात जो वक्त बे-वक्त कभी भी होती रहती है।
जिसके लिए किसी मौसम किसी सावन की आवश्यकता नहीं होती।
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आज कितने ही वर्ष गुज़र गए, कितने ही सावन आये बरसे सूखे, मगर आनंद की आँखों में अनामिका का सावन फिर कभी नहीं रीता, वो आज भी वैसे ही बरसता है, और....................


© विवेक पाठक