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आज ज्ञान और हम
ध्यान और ज्ञान की कोई उम्र कभी निर्धारित नहीं होती याद करें वह भी कभी कोई एक वक्त था जब सारे अस्त्र शस्त्र एक भक्ति रूपी ज्ञान की धारणता
के द्वारा निष्फल किये जा सकते थे बशर्ते लोगों को यह मालूम भी हो कि अपने शब्द में वह भक्ति कितने गहरे अर्थ समेटे हुए है
जी हां निंसदेह इस एक बहूत ही गहरी विचार धारा को आज बहुत से लोग अपने अनुकूल नहीं समझते जबकि इसमें छुपे ज्ञान की पकड़ और गहराई को सिर्फ़ इच्छा की दृढ़ता और सच्चे गुरु का साथ के द्वारा सिद्ध किया जा सकता है
क्या हो गर सारे राष्ट्र मिलकर जितने भी आविष्कार आज के समय तक किए गये हैं उनके प्रयोग के कोई अर्थ उस एक भक्त के सामने कोई मायने रखते दिखाई न देते हों
वह मग्न अवस्था का धारक बना भक्त एक विचार मात्र से उनपर नियंत्रण कर लेने की क्षमता रखता हो
जब कभी बात ज्ञान और बुद्धि के अधिकार व दिशा पर चलने की बात हो तो सोचों की धारा उस आखरी बिंदू पर पहुंच भक्ति के वैभव पर जाकर रूक जाती है जी हां याद कीजिये वो बातें जो समय की धारा में लिखी जा चुकी है उन बातों को, जो धर्म ग्रंथों में ध्रुव,प्रहलाद, आरूणी, राम, कृष्ण व ऐसे ही न जाने कितने भक्त प्रसंग हम सुनते आ रहे हैं हम सभी समझते भी हैं किंतु सही दिशा
सही ज्ञान देने वाले का न मिलना हमें बार बार हताशा से भर देता है
इतनी भी आसान नहीं होती यह भक्ति किंतु उचित निर्देश और उनका अनुपालन करवाने वाले कोई सिद्ध महापुरुष ही ऐसे उत्तम भेद को योग्य शिष्य की लगन शीलता पर विचार कर उन्हें प्रदान कर सकते हैं
निसंदेह वह भक्त अपने विचारों के प्रवाह पर हर परिस्थिति में नजर रखता हुआ उचित निर्णय लेने का सामर्थ्य रखता होगा
यह जो आज दिन दिन वासनाओं के दामन थाम बिना विचार चलती चली जा रही युवा पीढ़ी के अन्तर्मन् को खोखला करती उद्देश्यहीन भरी जिंदगी में अर्थों की कोई बात न रह गई है इसका कारण परिणाम
इनको तय किये गुमराह के काले अंधेरे में डुबाने और तकलीफें देने के सिवा और कुछ हासिल होता लक्ष्य मुझे तो दिखाई नहीं देता है,
निसंदेह इनका यह नारकीय जीवन जिसका ज्ञान स्वयं इन्हें भी नहीं होता और दुनियां की सबसे कीमती मूल्यवान इस जिंदगी के सदूपयोग से यह सभी तरह से वंचित रह जाता है
सभी समझते हैं और लाचारी में नासमझ भी बन जाते हैं राहों का न मिलना और राहों को स्वयं बनाने के लिए घोर परिश्रम विचार व्यवस्था सभी की जरूरत तो रहती ही है और यह सारी चीजें उन सभी को थका देती है जो निकम्मे मन से हारे निर्बुद्धि लोग ही होते हैं
मगर यह भी सत्य है कि भक्त की सारी भौतिक जरूरतें अंतिम मुक्त बिंदू में पहूंच कर खत्म हो जाती है....।


© सुशील पवार