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एक दर्द ऐसा भी 🥺🥺🥺🥺
मां बनना किसका सपना नही होता लेकिन जब खुदको अकेला समझो फिर क्या बीती है कोई जान भी नही सकता🥺🥺🥺🥺🥺ये रियल स्टोरी

जब पता चला में प्रेगनेट हूं तो मेने घर में बताया सब खुश हुए पति को बताया वो भी खुश हुए !

फिर उसी सुभा हमको निकालना था
मुरादा बाद दोस्त की बहन की शादी में
तभी सुभा ५ बजे हम निकल गए बस से
फिर सभी दोस्त आए पति के फिर क्या था
९ बजे की बस सी हम मुरादा बाद पहुंचे
दिन के १ बजे फिर वहां इतनी गर्मी पूछो
मत अब बस में पति के दोस्तो ने पूछा?

क्या कोई खुश खबरी है क्या ?

तभी पति ने बोला हां सबने कहा भाभी को क्यों
लाए ऐसे टाइम पे पहला महीना है और कितने झटके लग रहे है रास्ता भी ठीक नही है फिर कुछ नही!

जब वहां पहुंचे तो भाई सब नॉनवेज था में तो कुछ भी नहीं खा सकती थी फिर भी मेने खा लिया थोड़ा बहुत फिर ५ बजे निकले !

बस ली और बैठे फिर लेटे बैठे सुभा के ५ बजे हम पहुंचे जितने भी गए उतने बजे वापिस घर आ गए

में तो जहां दिल करता चली जाती भाग दौड़ कूदना सब कुछ कोई मतलब नहीं की में प्रेग्नेट हो

मुझे कोई फर्क नहीं पड़ा

एक दिन मम्मी ने देखा बहुत बोला ऐसे नही
करते वैसे नहीं करते 🥺🥺🥺🥺

कुछ दिन के लिए सब फिकर थी

फिर एक दिन सबर जंग हॉस्पिटल गई वहां बहुत
लंबी लाइन लगी थी जरूरत से ज्यादा चलो देखते है

फिर नम्बर लगाया ८:०० बजे काउंटर खुला तब कार्ड बना फिर ऊपर opd में गए वहां पति और
मां को बाहर रोक दिया मुझे बोला तुम जाओ

में दर रही थी अकेला क्या होगा में गई अंदर
वहां एक सिस्टर बहुत अच्छी थी वो मुझे देखते
ही बता दिया उस लाइन में जाओ वहां काम होगा
में गई !

डॉक्टर बोला सैंपल दो मेने दिया उसने थोड़े देर में
बता दिया कॉन्फ्रम कर दिया में प्रेगनेट हूं 😍😍

खुश हुई फिर धीरे धीरे सभी लाइन में लगी
और सभी टेस्ट हो गए थे फिर इंजेशन लगा बहुत
हार्ड ३ तिरिलोक के दर्शन हो गए😂😂😂😂

सब ओके होने पर जब बाहर आई तो पूछा क्या हुआ मेने बोला ओके है सब उस दिन सब कुछ ठीक था पहला दिन 😍😍😍😍😍😍

लेकिन फिर सबकुछ बदल सा गया 🥺🥺🥺
मेरे लिए किसी के पास टाइम नही होता 🥺🥺

में सुभा ५ बजे उठकर तयार होती और बिना कुछ खाए पिए रात के अंधेरे में निकल जाती उस टाइम ठंड थी तो रात रहती थी लेकिन कोई मेरे साथ नहीं जाता था में अकेले ऑटो रिक्शा लेती फिर
कुछ घंटों बाद हॉस्पिटल पहुंचती वहां लाइन लगती और जब दरवाजा खुलता बहुत ज्यादा धक्का मुक्की होती भागकर लाइन लगाते में
भी यही करती लेकिन और लोगो के साथ के फैमिली होती तो औरों को फर्क नहीं पड़ता था
लेकिन मुझे बहुत दुख होता था क्योंकि मुझे अकेले सब देखना होता था टॉयलेट नही जा सकते गए तो लाइन में नहीं लगने देंगे फिर पीछे जाओ भूख लगी है खाना बनाकर दिया नहीं बाहर जा नहीं सकते बहुत प्रेशानी हुई लेकिन फिर भी
बहुत कुछ सेहन कर के नंबर आता तो अपना टेस्ट चेकअप करवाते ५ बजे की आई और टाइम होगा ३ बज गए थे फिर भूख से हालत खराब फिर सूई से दर्द और चक्कर भूख अलग से हिम्मत कर बाहर निकल जाती फिर थोड़ी देर बैठकर आराम करती जब थोड़ा बहुत ठीक लगता झार मूरे लेती एक पानी की बोतल बस का इंतजार करना फिर
ये सब में ४ बजे तक बस मिलती फिर क्या बस में बैठकर झार मूरे से काम चलाती और किसी तरह घर पहुंचती 🥺🥺🥺🥺🥺🥺🥺

फिर क्या ५ बजे शाम के लेकिन घर में खाना नही
बना है यहां भूख से हालत खराब फिर क्या बहुत गुस्सा आता लेकिन में खुद काम कर के बना लेती
७ बजे तक खाना नसीब होता 🥺🥺🥺🥺🥺

जब घर में होती तो खाना जल्दी बन जाता
जब मेरा टाइम रहता जाने का तो ठीक उससे एक दिन पहले पति छुट्टी लेकर आराम कर लेते

जिस दिन जाना होता उस दिन कोई भी साथ नहीं होता मुझे बहुत दुख हुआ की ऐसी हालत में कोई मेरे साथ नही 🥺🥺🥺🥺🥺🥺🥺🥺

में बहुत दुखी हुई में ये कोशिश में रहती की
ये बेबी न हो और सब खतम हो जाए जिसके लिए
में जिस काम को मना करने पर भी नहीं सुनती

फिर भी कुछ नही हुआ 🥺🥺🥺🥺🥺🥺🥺

इधर में प्रेगनेट हूं और वो अपनी रास लीला कर रहे बाहर सेटिंग कर के बैठे हैं बहुत गुस्सा आया

में बहुत रोई फिर खुदको पेट में इतने मुक्के मारे
अब सब खतम कर दूं लेकिन फिर कुछ नही हुआ


अब ३ महीना लग गया अब और ज्यादा दिक्कत हो रही थी आने जाने में वही हालत कोई साथ नही
होता में चुप चाप रोती अंदर ही अंदर बैठकर फिर

घर में वही खाना नही बना 🥺🥺🥺🥺🥺

अब क्या करूं कुछ नही बोली जो कर रहे हों करो
अब सबकी आदत हो गई थी सोमवार को ऑफ करते मंगलवार तो ड्यूटी जाए 🥺🥺🥺🥺🥺

किसी को कुछ नही पड़ी है सब अपने रंग में रंगे हुए है कोई कुछ समझना नहीं चाहता था

ऐसे ही हॉस्पिटल में सारा टेस्ट करवा कर बाहर आती कभी कभी भंडारा होता तो खा लेती थी

पता था घर में कुछ नही मिलने वाला तो खा कर चलो सब सबके साथ कोई न कोई रहता मेरे पास कोई भी भी नही धीरे धीरे महीना ६ लगा फिर और दिक्कत भागकर लाइन लगाना जिसमे गिर गए तो सब खतम होने की नोबत थी लेकिन भगवान का शुक्र था ऐसा कुछ नही हुआ

और फिर इनलोगो बिलकुल ध्यान नहीं दिया और मेरे घर वाले मुझे ऐसी हालत में छोड़कर गांव चले जाते हर १५ दिन में में अकेले सब कुछ देखती घर खाना हॉस्पिटल जाना सब लेकिन कोई शर्म नही किसी में कोई मेरे लिए सोचे 🥺🥺🥺😔😔

बस खाना मिल गया खा लिया सो गए हो गया सबका बस बाकी कुछ लेना देना नही में तो खुदको संभाल लेती मेरे अंदर भी एक जान है
खुद से ज्यादा उसका ध्यान रखती एसी ही दिन गुजरे

८ महीना लगा फिर सब गांव गए और पति का वही था सोमवार को ऑफ मंगलवार जॉब कोई फर्क नही मेरे से उतना बैठना मुस्किल था फिर भी ६ मंजिल ऊपर नीचे करने में हालत खराब हो जाती

सरकारी हॉस्पिटल का यही काम है भागते रहे
इधर उधर थक जाओ फिर घर में काम खाना खुदकी देख भाल खुदको करना

मेरा ९ महीना लग गया ये लोग गांव में चले गए घर में कोई नही अभी ऐसे में खुदको संभाल भी नही पा रही और अकेले भागकर लाइन लगानी है फिर भी करती जान निकल जाती थी इंसाब से फिर भी

मजबूरी करवा देती हैं कोई सुनने समझने वाला नही मेने बोला जल्दी आना डिलिवरी की डेट १७ जनवरी की है बोले ठीक है

वो लोग गांव से आए २५ दिसंबर को आए और में तभी काम करती कोई मना नही करता भारी भारी कंबल धोना लकड़ी का जीना चढ़ना वो भी ९ महीने में किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता था

में सबके सामने हूं नही दिख रही थी लेकिन इतनी दूर गांव से उनकी जेठानी की बहु को समझा रहे है
ये मत करो वो करो बहुत कुछ ध्यान रखो लेकिन सोचने वाली है न जो सामने तुम्हारे लिए तुम्हारे पास अकेले सब कर रहे है वो नही दिख रहा लेकिन इतनी दूर की वो दिख गई

इतना बोलने से बहुत झगड़ा हुआ ३ घंटे में बहुत रोई लेकिन किसी को कोई फर्क नहीं पड़ेगा

दूसरे दिन सुबह में अल्ट्रारा साउंड करवा कर आई
डॉक्टर बोला अभी टाइम है लेकिन उसी शाम

सब कुछ हो गया डिप्रेशन के वजह से बच्चे पे असर पड़ा तो पानी की झिल्ली फट गई और सब खतम होने की शुरुआ हो गई मेने बोला ऐसे हो रहा है मुझसे पूछा गया दर्द हो रहा है मेने बोला नही कुछ नही हो रहा लीकेज हो रहा है
मम्मी आराम से खाना बना रही जेसे कोई बात नही जब २ घंटे बाद पड़ोसी को फोन किया उसको बुलाया बताया तो बोली डिलिवरी होने का टाइम है फिर क्या चलो हॉस्पिटल पूरी५ घंटे घूमते रहे लेकिन कहीं कोई डॉक्टर नही जो है पैसे ले कर भी गेरंटी नही दे रहा सब ठीक होगा ऐसा करते हुए पूरा समय बर्बाद हो गया फिर एक प्राइवेट हॉस्पिटल उसमे एडमिट कराया गया मुझे

जब चेक किया बोला बहुत देर कर दी लाने में अब नॉर्मल डिलीवरी नहीं हो सकती लेकिन पूरी रात कोशिश करते है

ठीक है देखते है वहां पिताजी हमारे ड्रींक कर घर में मस्त थे सुभा तक कोई फर्क नहीं तो मेने बोला
c cection delivery करदो फिर उन्होंने सिंगनेचर लिए और पहले ही बोल दिया की दोनो में से कोई एक बचेगा घर वाले बोले हमें दोनो चाहिए मुझे पूछा आप क्या चाहते हो बच्चा ए तुम मेने बोला बच्चा बचा लो मेरी किसी को भी जरूरत नहीं

डॉक्टर ने बोला हम दोनों को ठीक सही सलामत करेंगे १५ मिनट मे सब कुछ हो गया मुझे पता नही चला क्या केसे जब आवाज आई रोने की बच्चे की
मेने पूछा क्या हुआ है उन्होंने बोला गुड़िया हुई है

मेरी आंखो से आसू थे क्योंकि बेटे की उम्मीद थी

मेने सोच लिया ये मेरी बेटी है खुद देख लूंगी
फिर उसको दिखाया मुझे साफ नहीं दिखा दवाई
सूई का नशा था कुछ समझ नहीं आया बस पता है बेटी हुई हैं बाकी कुछ नही

मुझे दूसरे रूम में शिफ्ट किया गया सब बैठे थे मुझे होश दूसरे दिन आया और देखा पापा आए है
पूछा क्या हुआ है बोला बेटी पापा बोले तुमने बोला बेटा होगा बेटी केसे हुई ये सुनकर इतना गुस्सा आया की बास भाग जाति अगर हालत ठीक रहती तो लेकिन में तो ठंड से कप कपा रही थी और हिल भी नहीं पा रही थी

में लाचार थी फिर क्या न टाइम से खाना न पीना कुछ नही पति जी ज्यूस मेरे लिए लाए खुद ही पि लिया

क्या बोलना ३ दिन हॉस्पिटल से डिस्चार्ज होने पर घर आई तो घर वालो ने इतना परेशान किया। मत पूछो कुछ दिन हुए मेरे टांके नहीं खुले थे और

उनको में बोझ लगने लगी में तो बच्चे को गोद भी नही ले पा रही थी उसको केसे केसे संभाल लिया करती फिर ताने होते नोकर है हम इनको लेते हुए सब चाहिए मुझे बहुत दुख हुआ अगर बच्चा छोटा नहीं होता तो बता देती इन सबको १५ दिन बाद में सारे काम करने लागी धीरे धीरे सब कुछ किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता था जब में प्रेगनेंट थी तब और बेटी हाथ में थी तब सिर्फ तानो के और कुछ नहीं दिया किसी ने भी

मां बनना बहुत भाग्य की बात है लेकिन ऐसी स्थिति में तो कभी मां नही बनना चाहती वो
जिंदगी जीना नहीं चाहती
जब सबसे ज्यादा जरूरत पे कोई साथ नहीं देता तो

मां बनने की कौनसी खुशी मुझे सोचकर दुख हुआ की सबकी जरूरत में मेने इन सबकी जरूरत को रखकर उनकी सेवा करी छोटी सी बच्ची पे ध्यान नही दिया मालिश नहीं हुई खाना पीना
कुछ नही बास सबकी जरूरत होती थी मेरी बेटी की किसको नही पड़ी थी

आज भी में यही सोचकर डर जाती हैं दूसरी बार में क्या होगा इससे अच्छा एक बेटी वही बहुत है

सबसे खुबसरत पल मेरे लिए बुरे सपने की तरह है
जिसको भूल नही पाऊंगी ये जिंदगी भर याद रहेगा की जरूरी नहीं ससुराल में बेटी को सताया जाते खुदके मायके वाले भी होते है जो बिलकुल भी ध्यान नहीं देते 🥺🥺🥺🥺🥺🥺🥺🥺🥺🥺
© hatho ki lakiren aur kuch nhi......