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माँ याद आई मात्र मातृ-दिवस पर
आज मातृ दिवस पर मैं देख रहा था सोशल मीडिया पर लोग माँ पर बड़े - बड़े स्टैटस, लेख लिख रहे थे। पर क्या माँ हमें मात्र मातृ दिवस पर ही याद आती है, क्या माँ मातृ दिवस पर ही हमारे लिए खास होती है...? नहीं, बिल्कुल भी नहीं!.... माँ हमारे लिए हर दिन खास है, उन्हें कुछ नहीं चाहिए बस अपने बच्चों का प्यार, सहारा चाहिए होता है।
माँ संघर्ष का पर्याय हैं जिन्होंने कितने बलिदान, कितना त्याग किया होता है, अपने बच्चों के लिए वो अपने सपनों को भुला देती है।
एक उदाहरण देता हूं...मेरी इक दोस्त है M.Tech किया है कॉलेज से गोल्ड मेडलिस्ट है जिसकी शादी 2 साल पहले हुई थी और एक बच्चा भी है, उसको एक कंपनी से अच्छी तनख्वाह के साथ बुलाया जा रहा था तो उसने ठुकरा दिया, पिछले दिनों हमारी बात हो रही थी तो मैंने पूछा कि कॉलेज टाइम पर तो तुम्हारा खुद का सपना था अच्छी जॉब करना, अपनी जिंदगी जीना तो वो कहने लगी वो सब सपने थे... अब मेरी हक़ीक़त मेरे सामाने है और हक़ीक़त ये है कि मैं एक बच्चे की माँ हूं और वो और मेरा परिवार ही मेरे लिए मेरे सारे सपने है।
दोस्तों!.... ये सिर्फ मेरी इक दोस्त की ही नहीं, आपके भी कई दोस्तों की कहानी होगी इक लड़की माँ बनने के बाद अपने सपनों को, अपनों को भूल कर हमारे सपनों में जीने लगती है... फिर क्यों हम उसे सिर्फ एक ही दिन के लिए खास बना सकते हैं। मैं कहता हूं माँ के होने से हम है, माँ के होने से घर, घर लगता है।

मैं जब भी घर आता हूं तो घर के हर काम में माँ का सहयोग करता हूं और घर आने के बाद तो माँ कभी सब्जी बनाती ही नहीं है बोलती है कि तेरे हाथ की सब्जी अच्छी लगती है और मैं खाना खाने के बाद जो भी झूठे बर्तन होते है खुद से ही साफ कर देता हूं ताकि माँ को थोड़ी राहत मिले मैं आपको ये सब इसलिए नहीं बता रहा है मैं कोई बड़ा काम कर रहा हूं या खुद को श्रवण कुमार समझता हूं, नहीं! ऐसा कुछ भी नहीं है मैं माँ के संघर्ष को समझता हूं। यदि काम करने के हिसाब से तनख्वाह दी जाए तो आज सबसे ज्यादा तनख्वाह की हकदार माँ होगी।
आज मैं आपको दो सच्ची घटनाओं से अवगत करवाता हूं:-
1- इक औरत जिसके पति की मृत्यु हो चुकी थी और उसके एक बेटा था, औरत ने उसे अच्छे से पढ़ाया, काबिल बनाया और शादी कर दी शादी के बाद से ही लड़का माँ से अलग रहने लगा और दूसरी जगह मकान ले लिया। उसकी माँ गांव से दूर बने अपने पुराने घर में अकेली रहती थी,उस वृद्ध माँ की देखभाल करने वाला कोई भी नहीं था गांव के लोगों ने बेटे को बोला भी कि अपनी माँ को साथ ही रख लो, पर उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी...यहां तक कि उसकी माँ के बीमार होने पर भी मिलने नहीं आया । एक दिन गांव का कोई आदमी औरत के घर की तरफ से गूजर रहा था तो वहां दुर्गन्ध उठ रहीं थीं, तो उसने जा कर देखा तो वो माँ, वो बुढ़ी औरत 3-4 दिन पहले ही मर चुकी थी और उसका शव सड़-गल चुका था।
आख़िर क्या कसूर था उस माँ का जो उसे ऐसी मौत नसीब हुई....?

2- दूसरी घटना राजस्थान के जोधपुर की है जहां एक गर्भवती माँ को अस्पताल में भर्ती कराया गया तो डॉक्टर ने पाया कि माँ और बच्चे में से केवल किसी एक को ही बचाया जा सकता है।
जब ये बात उस देवी को पता चली तो उसने डॉक्टर को बोला कि आप मेरे बच्चे को बचा लीजिए। उस माँ का ऑपरेशन हुआ डॉक्टर्स ने बच्चे को तो बचा लिया और माँ को बचाने में नाकाम रहे। वो माँ अपनी औलाद की खातिर खुद को बलिदान कर गई, ये सिर्फ एक माँ ही कर सकती है।

धन्य हो.... हे जन्म जननी!!
कर अंकुरित नव द्रुम को ख़ुद निढ़ाल पल्लव सी ढह गई,
वो मां है जो हंसते–2 औलाद की खातिर बलिदान दे गई।

ये दोनों घटनाएं सच्ची है अब आप खुद ही सोच सकते हो ऐसी देवी स्वरूपा माँ क्या एक दिन ही हमारे लिए खास है, नहीं!!... माँ है वो, पूजनीय है वो।

मैंने माँ को हर दिन लिखना चाहा पर मेरे शब्दों में वो जोर ही नहीं जो माँ के अथाह प्यार - ममता को लिख सके, बस एक प्रयास किया है, मुझे लगता है जो भी ये लेख पढ़ेगा वो खुद ही समझ जाएगा कि मैंने क्या कहना चाहा है और क्यों...?

मैं मातृ दिवस की शुभकामना नहीं दूँगा, क्योंकि मेरे लिए हर दिन मातृ दिवस है।

LOVE U MAA💞

© Mchet043