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बिती बातें
बचपन कि निर्दोष नज़रों में रिश्ते कितने सुहाने होते हैं काम क्रोध लोभ मोह कुछ नहीं रहता और इक बिंदास नदी की तरह जिंदगी सरसराती बहती चली जाती है, होती है तो सांसों में मधुरता चाल में
दृढ़ता गोया कि कोई ज्ञानी अपनी लक्ष्य को छुने चला जाता हो हमेशा एक शुभ्रता एक सुंदरतम रूप का घेरा सा वजूद के चारों तरफ बांधते चल रहा हो जैसे । खेल कहानियां पढ़ने लिखने की फिक्र छोटे मोटे गृह कार्य और मां के आंचल में छुपकर ली गई एक मीठी सी नींद
सीखने के बहुत से अवसर जो आगे चलकर धन प्राप्ति के कारण बनते हैं जब कि बुनियाद सही पड़ जाये और विकसित होते हुए शरीर और मन की दशाओं को देखना समझना उसके व्यवहार
के परिणाम देखना और अपनी सोच को एक निश्चय के अधीन कर उसके अनुरूप निर्णय लेना शुरू कर देना यही सब तो बचपन और उसकी यादें होती हैं
घर की औरतें चाहे वो भाभी काकी चाची दीदी मामी जो भी हों सब में एक कुदरती गरिमा सी बिखरती रहती हैं चाहें उनकी समझ जो भी रहीं हों किंतु बचपन की नज़रों में मुझको और उनका आदर्श जो कुछ भी दिखता रहा हो वह सदा उपर्युक्तवर्णानुसार ही रहता है
और वो भी सदा एक उम्दा पथ प्रदर्शक की तरह हमेशा पूरी क्षमतानुसार श्रेष्ठ बोध की स्थापना हेतु प्रतिबद्ध नज़र आती थीं उनके पास कहानियां धर्म ज्ञान के वचन प्रेरक प्रसंग स्तूति मंत्र वाक्य को सही तरह से कोमल मानस पर स्थापित करने के प्रयत्न उस न जाने कितने सुंदरतम प्रयत्न मुझको याद आते ही रहते हैं।
‌‌। जहां तक मेरी समझ है मेरी समझ में तो औरतें ही बचपन के श्रेष्ठ सृजन का कारण होती हैं मेरी नज़र जहां तक देख सकती हैं उनके
केंद्र में मुझको तो सदा औरत के ही अनेकों रूप नज़र आते थे कभी माता स्वरसती तो कहीं अन्नपूर्णा लक्ष्मी की तरह तो कभी शक्ति स्वरूपा
दुर्गा की तरह हिम्मत व बल से परिपूर्ण करती हुई
इस बचपन को तृप्त करती सृष्टि के न जाने किस बंधन से बंधी सब कुछ वे रचती चली जाती हों
इक आनंद तरंग का इस तरह से प्रवाहमान होते रहना
कहानी किस्से और गीत संगीत सदा से ही मन को खिंचता है मैं भी अछूता न था कभी माताजी बुआजी भाभीजी दीदी सभी से मेरी फरमाइश रहती कि आज तो आप मुझे कोई मजेदार किस्सा सुना दो शादी के समय गाया जाने वाला कोई
मिलावटी गीत सुना दो
अक्सर मेरी फरमाइशें पूरी हो जाती थी और कभी टालमटोल का मै शिकार हो जाता था उनके कहने के अंदाज पर मुग्ध सा में हूं हूं कर उन्हें प्रोत्साहित करता रहता था
यह समय था जो फिर चुका था आज का समय
गाड़ीयों की सरसराती आवाजे पंखों, कुलर, एअर कंडीशन न जाने कितने आधुनिकता भरे साधनों से भरे घर के मुकाबले वह पुरानी दुनिया की साधारण से साधन मिठास वास्तव में ही बहूत अलग थी
शब्द हों और रसीले न हों तो फायदा ही क्या इनके प्रयोग का क्यूं कोई अपना समय खराब कर सिर पिटे
कुछ तो ऐसा असर हो कि मन बंध जाएं
आंनंद आ जाए और मन में कहीं और जाने का
ख्याल ही मिट जाए बस शब्दों की जादूगरी में दिल डुबता ही चला जाए ।
आप हम सब ही के चमकते चेहरे और भी दोगुने हो चमक उठते हैं जब वह पुराने दिनों की यादें मुखमंडल पर आ विराजती हैं और रस भरभराता हुआ सुनने वाले को तृप्त करता चला जाता था
खत्म ही नहीं होते थे वो रसो के सागर जिनके आशिक मुरीद बने महफ़िल की आस लिए बागीचो में आकर वो सारे चेहरे फुलों के मानिंद सुंगध से आप्लावित हो माहौल को भिगाए चले जाते थे



© सुशील पवार