...

2 views

तो कटेंगे ना
न जाने क्यों जिंदगी के दायरे हमेशा उलझन सुलझन के खेल खेलते ही आगे बढ़ते हैं आज कल के जमीन खरीदी बिक्री के सारे खेल आर आई पटवारी तहसीलदार के अनुमोदन के संभव ही नहीं होते हैं तरह तरह से क्रेता विक्रेता दोनों ही
इन तीन तिलंगों के बिना सौदा कर ही नहीं पाते थे

कुछ समय पहले की बात थी हमारे एक मित्र थे नाम था शिवा राव
वो धान कुटाई के कार्य से अपनी घर गृहस्थी चलाते थे पाई पाई जोड़ते ढाई लाख रुपए में शहर से आठ दस किलोमीटर दूर ग्रामीण एरिया में बीस डिसमिल का एक टुकड़ा जिसमें दो तरफ सड़क थी खरीद लिया था
कुछ समय बिताने के बाद लगभग दस बारह बरस बाद उन्हें अपनी बेटी के हाथ पीले करने हेतु धन
की आवश्यकता पड़ी तो उन्होंने उस जमीन के लिए खरीददार की तलाश शुरू कर दी काफी दिनों की मशक्कत के बाद मन माफीक रेट पर एक खरीददार उन्हें मिल गया किन्तु उसने एक शर्त रख दी पहले उन्हें नाप जोख कर जमीन की लंबाई और चौड़ाई की पक्के तौर जानकारियां मिल जाए
शिवा राव अपनी जमीन के नाप के लिए प्रयासरत हो गए और पटवारी से मुलाकात कर
उक्त जमीन के नापने हेतु आवेदन कर दिया और चक्कर लगाने लगे एक हफ्ते के बाद पटवारी जो कि लेडीस थी तथा उनकी नई नई नौकरी लगी थी
तो वह पूर्णतया नाप के कार्य में सक्षम नहीं हुई थी
तो उन्होंने एक परिचित आर आई के साथ उक्त भुमि के मापन कार्य करने लगी शिवा राव भी टेप पकड़ उनके इशारों पे नाचते रहे।
दो घंटे की मशक्कत के बाद पटवारी और आर आई ने जमीन की नाप में दो हजार स्क्वायर फुट की कमी दिखाकर घर की तरफ प्रस्थान कर गए
बेचारे राव साहेब सोचते रह गये ये कैसी बात हो रही है मुझे तो अच्छी तरह नाप कर जमीन दी गई थी यह जमीन अपने आप किस तरह कम ज्यादा हो रही है कुल मिलाकर जानदार के बिना क्या कभी कोई हलचल होती है नहीं न तो यह आर आई था जो अपने पांसे फेंकना शुरू कर दिया था
और पटवारी की ट्रेनिंग भी शुरू हो गई थी धन कमाने के सरकारी पद से दोहन करने के तरीके अपने असली रंग में उभरने शुरू हो चुके थे और जिसे चक्रव्यूह कहा जाता है जिसमें फंसने के बाद जान जानी तय थी वह चक्र चल पड़ा था
शिवा राव बड़े सोच में पड़ गया था आगे विवाह का जरूरी खर्च था जो उसे ज्यादा मोहलत नहीं देता था कि विधिवत नापने की प्रक्रिया पूर्ण कर सके
‌दूसरी तरफ पटवारी आर आई बात को लम्बा खिंच रहे थे बेचारे करें तो क्या करें इन दो हजार स्क्वायर फुट से उन्हें सीधे आठ लाख रूपये का नुक़सान दिख रहा था सो वे आर आई के दरबार में अपनी हाजिरी देने पहुंच गये काफी अनुनय विनय करने के बाद सौदा तीन लाख के घाटे के साथ पट गया सो आर आई ने एडवांस में धन की डिमांड कर दी वरना कार्यवाही आगे नहीं बढ़ती शिवा राव ने कह दिया आप ही को यह कार्य निपटाना है तो वे एक अरधप ॖ*शतरंज के खेल की एक चाल* के साथ मिलकर एडवांस राशि पांच लाख रूपये की दिला
कर अपने जेब में तीन लाख रूपये सरका लिए
और कुछ समय में ही सौदा पुरा हो गया बेचारे शिवा राव क्या करते उनके किस्मत का घाटा ही था जो सर चढ़ कर वसूल किया गया था
कानून कायदे किनके लिए है कौन छाती ठोक कर इनका प्रयोग निजी स्वार्थ के लिए कर रहा है कोई तो राह ऐसी दिखे जिंदगी के सरल प्रवाह को
बाधित न करें जहां तक नजरें जाती है सभी तरफ
एक भयंकर सा बवाल मचा हुआ है कमिश्नरी कलेक्टर आई जी मंत्री पार्षद इंजीनियर मकान के नक्शे शहरीकरण के अन्तर्गत पास कराने की कवायदें अर्थात ऐसा कोई पद नहीं जिसका दुरूपयोग न किया जाता हो और तो और
एक चपरासी की भी अपनी पकड़ दिखाई देती है वह भी भरपेट वसुली करने में सक्षम होता है बेबस तो सीधे सादे लोग ही होते हैं और अपनी खेती के धान कौन नहीं काटता है बेचारे सीधे से लोग ही ऐसे मक्कारों की खेती है तो कटेंगे ना...।



© सुशील पवार