...

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समझ जो न समझी गई
मन का बड़ा ही अजीब खेल था न जाने कैसी हसरतें न जाने कैसी चाहते और उस पर उठते सवाल जवाबों
के सिलसिले अजीबोगरीब कहाँनियाँ इस जान के पीछे रचे गये न जाने कैसे कैसे इँतजाम और रचनाओं के सागर में निसँदेह मछली की तरह हम भी इस सँसार
सागर में डुबे हुए काल बँथनो से बँधे एक शरीर के वस्त्र को पहने खेलों में उलझाये गए हैं..
तो फिर वह ब्रम्ह और शक्ति कैसे अलग रह.सकते थे
जिन्होने इस खेल की रचना की थी भला वह इससे कैसे नहीं खेलता किसी को उसका मनपसँद खिलौना
मिल जाये तो वह उसके साथ खेलने में मगन हो जाता है तो क्या वह अलग रह सकता था...
लोगों की वही समझ थी जो उसने समझा रखा था
शरीर सँरचना में नर नारी की विभाजन रेखा खिंच कर
इस तरह दोनो सँरचना हमेशा एक दुसरे की तरफ खिंची चली जाती थी गोया कि नदियाँ का प्रवाह बहता
चला जा रहा हो अपने ढाल की तरफ अग्रसर...
कहानियों में मन की बात ईच्छाओं का जामा पहनकर सामने प्रकट हो सकती थी भले ही वह एक
काल्पनिक दुनियाँ हो पर वह निसँदेह कुछ समय के लिये हमें हमारी हकीकती की समझ को पहचानने की
ईच्छा से हटा सकती थी...
कहाँनिया इसी तरह दिलचस्प हुआ करती हैं
कभी नासमझ और कभी समझ की पट्टी पढ़ कर भी
जो एक नासमझी की जलधारा में बहता चला जा रहा है जी हाँ मैं अपने बारे में ही कह रहा हूँ आपके बारे में ही कह रहा हूँ यकीनन आप हम दो नहीं पर फिर भी हम दो होकर अपने ही सामने आप ही खड़े हैं...
तो जानते ही हैं हम सभी बीज के अँदर ही उसका
निजाम (माल खजाना) का छुपा रहना जानते हैं और कम से कम इस सँसार का हरेक इँसान इस बात को अच्छी तरह जानता है जो पीढ़ी दर पीढ़ी अपने ज्ञान को ढोते चला आ रहा है
जो इस दुनियाँ में एकत्रित कर रखा है
तो एक साधक थे
जँगल में एक छोटी सी कुटिया बनाकर रहा करते थे
आप सभी जानते हैं जँगल आम लोगों के रहने के लिहाज से कठीन जगह होती है खाने पीने के सारे
इँतजाम खुद उस दुरह स्थान पर करते हुए इच्छित
वरदान की प्राप्ति के लिये कड़े नियमो के साथ साधना
करता था बहुत समय तक उपासना करने के बाद उसके मन में ईच्छा हुयी की गँगा दर्शन स्नान कर आवें
तो वह तैयारियाँ पुरी कर निकल पड़े
चूँकि वे साधक थे सिध्द साधू नही हुए थे इसलिये हमेशा उनकी पारखी नजर लक्ष्य खोजने और पहचानने की कोशिश किया करती थी जैसा कि हर साधक में
यह भाव हमेशा बना रहता है ज्ञान और पहचान और मँजिल की प्राप्ति तो वे अपनी राह में चल पड़े चलते
चलते जगत व्यवहार को गहराई से परखते गँगाजी की
राह में बढ़ते चलते गँगाजी जब पाँच किलोमीटर दूर थी तो उन्हें थकान महसूस हुई और वे विश्राम के उद्देश्य से ठीकाना ढुँढने लगे कुछ दूर उन्हे उस शहर के राजा का एक महल नजर आया ।वे महल में जाकर राजा के सामने अपनी रूकने हेतु स्थान की याचना की
और कहाकि सुबह वह अपने लक्ष्य गँगा स्नान हेतू रवाना हो जाएँगे अतः वे गँगाजी अब कितनी दूरी पर
स्थित है ?राजा के सामने प्रश्न करने पर राजा ने उतर
दिया कि मैने तो देखा नही है किँतु सुनता हूँ कि पाँच
किलोमीटर दूर है राजा ने भोजन पानी निवास की व्यवस्था करवा दिया । साधक भोजन पानी से निवृत
होकर सोने चला गया साथ ही सोच में पड़ गया था कि
इतनी पासमें गँगाजी हैं और यह राजा दर्शन भी नही किया कहीं मैं किसी पापि के पास तो नही आ गया ?
खैर सुबह तीन बजे नींद खुली देखा कुछ आवाजे आ रहीं हैं
कुछ मधुर स्वरों के साथ भजन गाती औरतो की आवाज आ रही है कुतुहुल के साथ साधक आवाज की तरफ चला गया देखता है कि सुँदर अलँकारो गहनो से सजी औरते नहीं देवीयाँ वहाँ सुगँधित जल छिड़काव व साफ सफाई करती हुई दिल छुती आवाजों के साथ भजन, परमात्मा की महिमा गा रहीं हैं और उस इकठ्ठी की गई धुल में से कुछ कणो को सिर में धारण कर रहीं हैं और बाकि सारी धुल कण
एक सुनहरे चमकते पात्र मे रख रहीं है ,साधक अभी
हैरानी से भरा यह नजारा देख ही रहा था कि उसकी
हैरानी और बढ़ गई जब तीन काली मरियल सी गायें
महल के दरवाजे तक पहुँची और काया पलट मानव
तन में दिखाई पड़ने लगी वे बहूत ही गँदगी से भरी जान पड़ती थी राजा जब बाहर निकले तो वह तीनो
औरते चरण छूकर वँदना करने लगी आश्चर्य घोर आश्चर्य वह तीनो शुध्द साफ चमकदार और स्वस्थ दिखाई देने लगी ...।
साधक की नजर सब कुछ देख रही थी वह भजन गाने वाली औरतों से परिचय पूछने लगा
तो औरतों ने बतलाया कि राजा परमात्मा के स्वरूप
को जानने वाले हैं इनके कदमो की धुल कणी से हमारे
पाप का बोझ कटता जाता है इसलिये हम इनकी सेवा कर चरण धुलि माथे में धारण करने आते हैं और जाते
समय यह धूल कण अपने साथ देवलोक ले जाते हैं जहाँ सभी देवता इस धुलि को सर पर धारण करते हैं
अब चकित सा वह साधक उन गायों से पलट मानव देह
प्राप्त की गई औरतों के पास पहुँचा और उनसे भी वही
परिचय प्रश्न पुछने लगा ? तो उन्होने कहा हम गँगा जमुना और सरस्वति नदियाँ हैं इँसान के पापो के बोझ से हम रोज इसी तरह दीन हो जातीं है तो ऐसे पहुँचे हुए महापुरूष के चरण धूलि और वँदना से हमारा यहभार और कालख धुल जाती है इसलिये हम रोज इनकी शरण आकर अपनी दुर्दशा से मुक्त हो जाती हैं ..।
अँजाने में ही सही उस साधक के सामने एक बहुत बड़ा रहष्य खुल गया वह विचारवान था और उसकी समझ में आ गया था कि सच्ची साधना का असर कैसा
होता है देवी देवता नदियाँ सभी कुछ एक सच्ची शरण
प्राप्ति होने पर ही सिध्द होता है और इससे बड़ा अब उसे कोई प्रमाण की जरूरत नही रह गई थी वह नहा धोकर उस राजा को नमन कर शिष्य के रुप में खुद को
समर्पित कर दिया जिसमें ऐसी लगन देखकर उस शिष्य को भक्ति भेद देकर अपने जैसा ही कर लिया..
इस तरह वर्णन से बहुत से विचार पक्ष निकल कर मानव को निर्णय करने में सहायक होते हैं तो कहानियो से जो कि जीवन के असल व्यवहार से उठाई
गई हो अथवा वो सर्वथा कल्पनापूर्ण हो हमेशा मानव को एक राहगिरी सा काम करती दिखायी देती है।
प्रस्तूत कहानी एक जिज्ञासू की जिज्ञासा शाँत करती है लक्ष्य दिखाती है और प्राप्ति की राह भी ...।



© सुशील पवार