...

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" निकले थे "
" निकले थे "

निकले थे यूँ ही सफ़र पर तन्हा..

लौटे हैं दिल की गहराई में लाखों

दर्द की इंतेहा लेकर यूँ ही तन्हा..!


निकले थे यूँ अपनों के अपनेपन

को हम तलाशने..

अफ़सोस के खुद को बेग़ानों में

कुछ यूँ इर्द-गिर्द घिरा हुआ पाया..!


मानो कि भ्रम की आंधियों में बिखर

गए मेरे अपनों का कारवां..!

निकले थे यूँ ही के खुद को ताजी

आबो हवा में रह कर चंगा करेंगे..!

मगर हालत में कोई सुधार नहीं हुआ..!


खुद को दर्द-ए-सितम के सिवा कुछ

और दिला नहीं सकें हम..!

नहीं बचा सके खुद को हम, झुलसा

आएँ हैं..

अपनों के रिश्तों की धधकती आग में..!


निकले थे यूँ ही चाहत लिए दिल में कि

कुछ सुनहरी यादों को अपने हिस्से में

लिख आएँगे..!


मगर मुरझाए हुए एहसासों की उदासी ने..

हमारे मासूम एहसासों का दम ही कुछ

यूँ ही घोंट दिया..!

कि बस खुद को खुद में ही समेटे दर्द

की आह को लिए मायूसियों के साए

से अपना दामन हम यूँ ही छुड़ा आएँ..!


क़सक़ जो मेरे दिल की आरज़ुओं में

कहीं यूँ ही क़समसा कर दम तोड़ गईं..!


अफ़सोस के खज़ानों में और भी

ज्यादा हम अपने इज़ाफ़ा जोड़ आएँ..!

नम अश्कों की नमीं को ज़मीनदोज कर..


हम यूँ ही दिल की कब्रग़ाह में कड़वे

अनचाहे रिस्ते लहुलुहान जख़्मों के

रिश्तों को दूर कहीं दफ़ना आएँ..!


🥀 teres@lways 🥀