...

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#पल_और_पग_चार_चला
// पल और पग चार चला //

जग में जीवन पल चार चला,
जीवन पथ पर पग चार चला;
कभी कोई पाथ पे साथ चला,
कभी अकेला पग पाथ चला।

विचार तर्क अनुपात चला,
भव- सागर में बहता चला;
मलंग सा दबंग चलता चला,
दंग सा दिन रात चलता चला।

सुंदर स्वप्न बारात लेके चला,
गीत नज़्म सौगात लेके चला;
शब्द भाव- सार लेकर चला,
निश्चल निश्छल यथार्थ चला।

अग्निपथ अडिग अटल चला,
पथ कंटक चुगत चलत चला;
निड़र निर्भीक निस्वार्थ चला,
पथ पग जमा यथार्थ में चला।

कभी पथिक निस्वार्थ मिला,
कभी चेहरे- चार लेकर मिला;
सभी से स्नेह प्रेम भाव मिला,
कभी !
स्वार्थ कभी भावार्थ से मिला।

कभी हार कभी जीत से मिला,
नित जीवन धूप छांव से मिला;
कोई भला तो कोई बुरा मिला,
घटनाओं से दो चार होते चला।

जीवन चौराहे पे खड़ा अकेला,
चरु दिशा देखूं अपने दृग फैला;
सुख - दुख ह्रदय तराज़ू तोला,
पीड - अश्रु चक्षु अतल धकेला।

पगडंडी पकड़ चल पड़ अकेला,
जग में जीवन के पल चार चला;
दो !
तेरे द्वार चला दो तुझपे वार चला,
जीवन पथ अकेले सब हार चला।

जीवनपथ पल चार पग चार चला!





© Nik 🍁