...

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मेरा मन
मेरा मन
अनमाना सा
नाराज़ रहता है अक्सर
पूछता है क्यों
मानती हूं सब को
उस से ऊपर
किनारे कर देती हूं
उसकी सब ख्वाहिशें
डाल देती हूं उस पर
हज़ारों आजमाइशें
पीछे ही रहता है ये
मेरी हर लिस्ट में
खाली हो रहा है
धीरे धीरे किस्त में
मौन रह कर अब वो
खलबली मचा रहा है
मेरा मन मेरे भीतर रह कर भी
मुझसे दूर हुए जा रहा है.......



© Geeta Dhulia