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मेरा मन
मेरा मन
अनमाना सा
नाराज़ रहता है अक्सर
पूछता है क्यों
मानती हूं सब को
उस से ऊपर
किनारे कर देती हूं
उसकी सब ख्वाहिशें
डाल देती हूं उस पर
हज़ारों आजमाइशें
पीछे ही रहता है ये
मेरी हर लिस्ट में
खाली हो रहा है
धीरे धीरे किस्त में
मौन रह कर अब वो
खलबली मचा रहा है
मेरा मन मेरे भीतर रह कर भी
मुझसे दूर हुए जा रहा है.......
© Geeta Dhulia
अनमाना सा
नाराज़ रहता है अक्सर
पूछता है क्यों
मानती हूं सब को
उस से ऊपर
किनारे कर देती हूं
उसकी सब ख्वाहिशें
डाल देती हूं उस पर
हज़ारों आजमाइशें
पीछे ही रहता है ये
मेरी हर लिस्ट में
खाली हो रहा है
धीरे धीरे किस्त में
मौन रह कर अब वो
खलबली मचा रहा है
मेरा मन मेरे भीतर रह कर भी
मुझसे दूर हुए जा रहा है.......
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