...

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क्या सही था वो
मेरा अल्फाजों का हिसा था वो,
मेरा लफ्ज़ों की ताकत था जो,
बन के अंजान रह गया वो।

मेरी दुआओ मे मुराद था वो,
मेरी सफ़र की मंजिल था जो,
बन के तमन्ना रह गया वो।

जिंदगी की दास्तानों का किरदार बन के था आया वो,
मेरी लिखाई का एहसास बन के रह गया जो,
कयू था ऐसा वो।

मेरा सोचने की वजह बन गया वो,
मेरे दिल की धड़कन था जो,
मेरा टूटने का ज़रिया बन गया वो।

मेरी आँखों की चमक था वो,
मेरी मुस्कान का सहारा था जो,
क्या लम्हा था हमारा वो।

एक माज़ी था वो,
या हाल था कभी जो,
क्या मुस्तकबिल होगा वो.?
© naim_zoha