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कोई वजह नहीं है अब मुस्कुराने के लिए....
मोहब्बत के सिवा क्या है ज़माने के लिए।
हर बार मैं ही मिला हूं आज़माने के लिए।।
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दर्द है, तकलीफ़ है कुछ नाकामियाँ भी हैं,
इसके सिवा कुछ ना बचा लुटाने के लिए।।
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जो कुछ मिला है आपसे संभालके रखा है,
जख्मों के अलावा क्या है दिखाने के लिए।।
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ज़मीं ऐ हिज़्रे अलम पे बुनियादे मकां रखी,
तन्हाई की छत मिली सर छुपाने के लिए।।
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जिन्दा रहने के सारे बहाने भी ख़त्म हो गए,
कोई वजह नहीं है अब मुस्कुराने के लिए।।
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हिसाब किताब करने को बेताब है "सिफ़र"
धोके संभालके रखें है तुम्हें लौटने के लिए।।
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- संजय सिफ़र
© संजय सिफ़र
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