...

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तुम बिन
कितनी बातें करती हूं तुमसे
फिर भी कितनी बाकी रह जाती हैं
सब कुछ कह देती हूं तुमसे
फिर भी कुछ अनकहा रह जाता है
खिलौने से जैसे नहीं भरता मन बच्चों का
तुम से मिल कर मन मेरा भी नहीं भरता है
तुम्हारे साथ होती हूं तो वक्त पंख लगा उड़ जाता है
तुमसे दूर रह कर वक्त काटे नहीं कटता है
तुम से ही सब रास्ते निकलते हैं
तुम पर ही हर पड़ाव रुकता है
मन मेरा मनचला सा,
तुम्हारे बिन अब कहीं नहीं लगता है।
© Geeta Dhulia