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प्रियम भारतम
/ #जीवन_जन्मभूमि_का //

जन्मभूमि तुम्हारी भारतवर्ष महान की,
देवभूमि ध्यान - ज्ञान तप और त्याग की;
मात्रभूमि को सम्पूर्ण समर्पित परमार्थ की,
जीवनी मेरी तुम्हारी धरा और धरमार्थ की।

अपनी सविता तेज - मंडल का धर ध्यान,
नित्य स्वयं की संस्कृति का कर सुपाण;
निरंतर कर्म पथ अग्रसर कर नव निर्माण,
नित धर्म पथ अनुसरण करें जनकल्याण।

ध्यान ज्ञान गुण सागर से जीवन कल्याण,
सद्कर्मों से जननी - जन्मभूमि गुणगान;
धर्म- कर्म पथ संकल्प से मात्रभूमि महान,
गगन पटल अंकित कर स्वयं की पहचान।

छद्म रूप छिपे हुए करें मोह माया बौछार,
ईष्र्या कुंठा से पीड़ित आक्रमण को तैयार;
असुर
प्रवृत्ति मानव रिपु नवषडयंत्र रचे हर बार,
जात पात भाषा रंग में जन बांटे बारम्बार।

रिपु घात लगाए बैठे खोलन को धरा द्वार,
चित्त-विचार चित- संवार सुन धरा पुकार,
माँ भारती रही पुकार तू ह्रदय भर हुंकार;
जाग्रत रहे चितवन चेतना सिंह हो सवार।

हम हाथ जोड़ माँ- भारती को कर प्रणाम,
चरुदिशा करे सुपाण हो संस्कृति गुणगान;
नित निरंतर उर्जावान तीव्र गति से निर्माण,
नभ पट स्वर्णअक्षर में अंकित भारत नाम।

© Nik 🍁

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