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#मजबूरी
#मजबूरी
झूठ नहीं मजबूरी है,
तुम जानों क्या क्या ज़रूरी है;
नंगे बदन की भी अपनी धुरी है,
तुमको क्यों यह मजबूरी है,
क्या पर्दों में भी अजमाइश जरूरी है
दिन कि उजालो में शरीफ़,
रात में फिर क्यों जरूरी है
कहते हो महोबत है,
फिर क्यों अपना बनाने में दूरी है ।।
© mmmmalwinder
झूठ नहीं मजबूरी है,
तुम जानों क्या क्या ज़रूरी है;
नंगे बदन की भी अपनी धुरी है,
तुमको क्यों यह मजबूरी है,
क्या पर्दों में भी अजमाइश जरूरी है
दिन कि उजालो में शरीफ़,
रात में फिर क्यों जरूरी है
कहते हो महोबत है,
फिर क्यों अपना बनाने में दूरी है ।।
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