...

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'इश्क़ की गलियां'
" बेहद खूबसूरत था वो पंछी,
जो आज़ाद हो गया,

कुछ दूर से देखा तो लगा,
वो रोता हुआ लफ्ज़ आबाद हो गया,

चलते चलते कुछ तो खो आया हूं मैं,
मगर,
मिला उनसे तो लगा, जैसे आदाब हो गया,

इश्क़ की गलियों से गुज़रते,
आज एक अरसा हो गया,

बस इल्म न हुआ,
कब मुसाफ़िर बर्बाद हो गया! "
© Musafir