...

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जीवन के दिन छोटे सही हम भी बड़े दिलवाले
थी वो बस दस साल की, बेहद छोटी...
ना ज्यादा बोलती, ना ज्यादा खाती, वही मानो दिन की एक दो रोटी...
उस बच्ची का नाम था - ख्याति,
पर नाम पर क्या रखा है.. ना वो ज्यादा बोलती ना कही जाती...
ना जाने कौन सी दुख थी उसकी आँखों पर,
ना जाने एक दस साल की बच्ची की आवाज में क्यों था दर्द का स्वर...
तो हर किसी की तरह मैंने भी पूछा, क्या हुआ, कोई परेशानी?
वो बोली मुझे, एक दोस्त चाहिए, जो मुझे समझे, और सुनाएँ कहानी....
ना जाने क्यों उसको इन बातों को सुनकर मेरी आँखे भर आई,
उसने कहा मैंने ये बात सबको सुनाई,
पर कोई दोस्त ना मिल पाया,
तो मैंने बहुत धीरे से समझाया,
खुद को खुद कहानी सुनाओ,
अगर रूठो कभी तो खुद को खुद ही मनाओ...
ना जाने क्यों मेरी बातों को सुनकर वो थोड़ा मुस्कुराई
बोली सब बोलते हैं दोस्त ढूंढो पर आप बहुत अच्छे से समझाईं
मैं बोली लोग समझते नहीं,
बस बोलते हैं जो उन्हें लगता सही।
वो पूछी - तो आप कैसे समझे फ़िर?
क्या उत्तर दूं मैं चुप से रही सि्थर।
मैं बोली क्योंकि जब मैं तुम्हारे उम्र की थी मैं चाहती थी कोई मुझे भी कोई समझे,
मैं फिर बोली छोड़ो ये सब बातें, क्यों ना अब हम मुस्कुराएं।।।
मैं बोली अब मुझे जाना होगा - फिर मिलेंगे कभी...
ख्याति बोली- जरूर मिलेंगे दीदी...चलो मुस्कुराओ अभी।।।।
- priel
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