शायरी
हमनें पहलें हीं खुद कों
संस्कारों कीं जंजीरों में
इसतरह सें जखड रखा हैं
कीं चाहकर भीं तोड नहीं सकतें हम...
तुमनें फिर जीनें पर हीं पाबंदीयां लगा दीं
तो टूट कें बिखर जायेंगें हम...
कितनीं भी कोशिश करों समेटने कीं
टुकडों में बंट जायेंगे हम...
शोभा मानवटकर...
संस्कारों कीं जंजीरों में
इसतरह सें जखड रखा हैं
कीं चाहकर भीं तोड नहीं सकतें हम...
तुमनें फिर जीनें पर हीं पाबंदीयां लगा दीं
तो टूट कें बिखर जायेंगें हम...
कितनीं भी कोशिश करों समेटने कीं
टुकडों में बंट जायेंगे हम...
शोभा मानवटकर...
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