...

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इश्क, वक्त और जुआ!💔❣️
ख़ुदा माना तुम्हें हमनें दिल से सनम,
बिन गए मक्का, पहचान हाज़ी हो गई,

सिर्फ़ मोहब्बत ही तो कुसूर था हमारा,
सारी दुनिया मुंसिफ ओ क़ाज़ी हो गई,

सोचा था थम जाएगा वक्त मेरे खातिर,
मगर नज़र डाली तो उम्र माज़ी हो गई,

थाम लिया तुमने हाथ किसी और का,
क़िस्मत, फिर तो मां भी राज़ी हो गई,

गुज़रे तुम लम्हा भर नज़र के सामने से,
खूबसूरत यादे-मोहब्बत ताज़ी हो गईं,

सुना था, सबसे नाज़ुक अहसास है इश्क
मालूम हुआ, ये तो जुए की बाज़ी हो गई!
🌸💔❣️

हाज़ी— जिसने मक्का की तीर्थयात्रा
की हो,
मुंसिफ— न्यायधीश,
काज़ी— इस्लामी नियमानुसार फैसला
सुनाने वाला,
माज़ी— भूतकाल (past)

— Vijay Kumar
© Truly Chambyal