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सुविचार।
मैं पेड़ सी हूं पनप जाउंगी
कहीं भी,कभी भी
मुझे फर्क नहीं पड़ता, धूप से कभी
कई बनावटी, भ्रमित मौसमी विचार
मैं स्वतंत्र प्रकृति, उन्मुक्त भाव
ऊंची ऊंची क्षुब्ध मीनारें ,
दिखाएंगी अपना करतब
पर ढहेंगी एक दिन कलुषित मकसद
तब फिर से पनपुंगी,
दूब सी जीवंत सारस्वत
मैं सच हूं, स्वतंत्र हूं
बगैर बंधन,गांठ के
मैं प्रकृति सी हूं
सत्य शिव सुंदर।
#writco
© Gitanjali Kumari
कहीं भी,कभी भी
मुझे फर्क नहीं पड़ता, धूप से कभी
कई बनावटी, भ्रमित मौसमी विचार
मैं स्वतंत्र प्रकृति, उन्मुक्त भाव
ऊंची ऊंची क्षुब्ध मीनारें ,
दिखाएंगी अपना करतब
पर ढहेंगी एक दिन कलुषित मकसद
तब फिर से पनपुंगी,
दूब सी जीवंत सारस्वत
मैं सच हूं, स्वतंत्र हूं
बगैर बंधन,गांठ के
मैं प्रकृति सी हूं
सत्य शिव सुंदर।
#writco
© Gitanjali Kumari
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