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"सुनंदा चाची"
मोहल्ले और आस पड़ोस में सब उन्हें इसी नाम से पुकारते थे क्या छोटा क्या बड़ा।उनका एक छोटा सा ढाबा था, जहां वह हर‌ तरह के शाकाहारी भोजन रखतीं थीं, यूं भी सुनंदा चाची के हाथों में बड़ा स्वाद था जब भी किसी के घर अचानक मेहमान आ जातें तो वो सीधा चाची के ढाबे की ओर रूख करता था वहां से एक दो सब्जी ले लिया फिर दाल चावल रोटी घर पर बना लेते। कभी किसी बच्चे को कुछ खिलाना तो कभी तबीयत खराब तो सीधे चाची के यहां से खाना आ जाता।
आज चाची के पास क्ई डिलीवरी लड़के थे लेकिन कभी चाची ने बिल्कुल अकेले ये शुरुआत की थी।
तब चाची की उम्र ४५ के आस पास थी।एक दिन उनके पति रात को सोए तो सुबह उठ न सके। कुछ दिन तो सुनंदा के रोते कलपते बीत गए फिर उन्होंने खुद को संभाला।एक बेटी है चाची की वो कुछ दिनों तक मां के पास रहीं उन्हें संभालने के लिए फिर वो भी अपने ससुराल चली गई।
फिर सुनंदा ने ही खुद को संभाला और अपने जीवन की एक नई शुरुआत की और एक ढाबा चलाने लगी इस तरह चाची का समय भी अच्छे से गुज़रने लगा और उन्हें किसी की ओर ताकना नहीं पड़ता था।बाद में उनका ढाबा खूब चलने लगा और कब वो सुनंदा से सुनंदा चाची बन गई उसे कुछ पता ही न चला। कभी कभी एक छोटी सी शुरुआत इन्सान को आगे बढ़ने की ओर अग्रसर करती है और वो अपने एक छोटे-से क़दम से दूसरों के लिए भी प्रेरणास्रोत भी बन जाता है।
(समाप्त)- लेखन समय- रात ९:३०- बृहस्पतिवार


© Deepa🌿💙