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"यही है जिन्दगी"
रूपा की आंख खुली तो शाम हो चुकी थी। कुछ देर बाद नर्स आई और उसकी बीपी की जांच करने लगीं फिर रूपा को कुछ एक दवाई देकर चलीं गई। रूपा बगैर कोई प्रतिक्रिया किएँ चुपचाप यंत्रवत सी लेटी रहीं,ये तो हर दिन की बात थी बल्कि कई सालों की बात थी। रूपा खिड़की की ओर मुंह किएँ लेटी रहीं और सोचने लगीं वक्त भी हमें क्या क्या दिखाता है और हम समय के आगे कितना मजबूर हो जातें है। लगभग आज से ५ साल पहले रूपा और विवेक का प्रेम विवाह हुआ था। दोनों बहुत खुश थे। समय पंख लगा कर उड़ता रहा और एक वर्ष के बाद रूपा ने एक पुत्री को जन्म दिया जो कि रंग रूप में रूपा की तरह ही बहुत सुन्दर थीं रूपा और विवेक बहुत खुश थे बेटी का नाम भी उन्होंने दीपाली रखा क्योकि वो दीपावली को जन्मी थीं।
छ महीने बाद बेटी का अन्नप्राशन था रूपा और विवेक सब को खुशी खुशी निमन्त्रण देने गए ।
एक दिन की बात है दोनों अपने किसी रिश्तेदार के यहाँ से लौट रहे थे कि रास्ते में ही रूपा के सिर में तेज दर्द उठा दर्द इतना असहनीय था कि कराहने की आवाज चिल्लाने में बदल गई। विवेक बदहवास सा रूपा को अस्पताल ले गया वहाँ डाक्टरों ने रूपा की जांच की तो उन्हें कुछ समझ नहीं आया तो उन्होने कुछ एक टेस्ट लिख कर दे दिए। कुछ दिनों बाद रिपोर्ट आई कि रूपा को ब्रेन टयूमर हुआ है दोनों बहुत डर गये रूपा विवेक से लिपट कर खूब रोईं कि अगर उसे कुछ हो गया तो दीपाली को कौन देखेगा?
विवेक ने कहाँ हिम्मत रखों तुम्हें कुछ नहीं होगा। डाक्टरों से बात की गई तो उन्होने इसका उपाय आपरेशन बता दिया। विवेक ने अपनी माँ को आगरा से बुला लिया। कुछ दिनों बाद विवेक रूपा को अस्पताल ले गया। नन्ही दीपाली अपनी माँ की गोद से उतरते ही रोने लगतीं फिर विवेक की माँ ने ही उसे संभाला अब तक रूपा के माता पिता भी आ चुके थे। लगभग तीन घंटे तक आपरेशन चला और डाक्टरों ने विवेक को बताया कि आपरेशन अच्छे से हो गया है अब कुछ दिन आराम के बाद रूपा बिलकुल ठीक हो जायेगी। उसके बाद विवेक अस्पताल रूक गया और बाकी सबको घर भेज दिया।
दूसरे दिन विवेक रूपा के रूम में गया उसे अब तक होश नहीं आया था वो आंखों में आंसू लिए बस रूपा को देखता रहा फिर बाहर आ गया। कुछ देर बाद बाद विवेक की माँ और रूपा की माँ और पिताजी आ गए उन्होने विवेक को घर भेज दिया और खुद रूक गऐ अस्पताल।
विवेक घर जाकर सो गया।
शाम को उठा तो अस्पताल फोन किया,पता चला रूपा को अभी तक होश नहीं आया है विवेक चिन्तित हो उठा अब तक तो उसे होश में आ जाना चाहिए था सोचते हुए वो अस्पताल की ओर चल दिया। वहाँ डाक्टरों से भी पूछताछ की गई तो वो भी चिन्तित दिखे जब डाक्टरों ने जांच की तो उन्होंने रूपा को कोमा में पाया सुनकर विवेक पागल सा हो उठा...... हे भगवान अब क्या होगा।
सभी परेशान हो उठे, एक दिन दो दिन....... एक हफ्ता दो हफ्ता और देखते ही देखते दिन हफ्ते और महीने सरकते रहे। रूपा निष्प्राण सी बिस्तर पर पड़ी रहती और विवेक पागलो सा अस्पताल से घर और घर से दफ्तर और अस्पताल दौड़ता रहता।
कहते है समय हर चीज भुला देता है और यहाँ भी यही हुआ देखते ही देखते एक साल गुजर गया इस बीच नन्ही दीपाली भी एक साल की हो चुकी थी। विवेक अब उदास और गुमसुम रहने लगा तभी एक दिन रीमा उसके पास आई और मुस्कुरा कर बोली सर आज मेरा जन्मदिन है मैने अपने तमाम स्टाफ़ को बुलाया है प्लीज आप भी आईयेगा मुझे बहुत खुशी होगी।
विवेक बिलकुल भी जाना नहीं चाहता था मगर मोहित के कहने पर उसको जाना पड़ा। वहाँ भी वो गुमसुम ही रहा। और रात को खाने के बाद उसने विदा ली। रीमा विवेक को मन ही मन पसंद करने लगी थी,उसकी उदासी और अकेलापन उससे देखा नहीं जाता था।
एक दिन विवेक चुपचाप बैठकर टिफिन खा रहा था कि तभी रीमा आ गई और बोली सर एक बहुत अच्छी मूवी लगी है मेरे साथ मोहित और चैताली भी जा रहे है प्लीज आप भी चले न हमारे साथ,विवेक मना करना चाहता था लेकिन रीमा बोली प्लीज चलिए न और उसने विवेक का हाथ थाम कर कहा आप आएगें तो मुझे खुशी होगी विवेक ने पूछा मेरी खुशी से आपको क्या मिलेगा? रीमा मुस्कुरा कर बोली मुझे आपकी खुशी में खुशी मिलती है।
समय धीरे धीरे गुजरता रहा अब तलक़ विवेक भी रीमा की ओर आकर्षित होने लगा था,हालांकि रीमा रूपा की तरह खूबसूरत नहीं थी मगर उसके अपने पन के व्यवहार के चलते वो विवेक को पसंद आने लगी थी।
देखते ही देखते तीन साल गुजर गए रीमा को अब तक होश नहीं आया था,मगर विवेक रोज एक बार अस्पताल जरूर जाता कुछ देर रूपा को देखता रहता फिर चला जाता।
एक दिन विवेक दफ्तर नहीं जा पाया तो रीमा ने उसे फोन किया तो पता चला उसे तेज बुखार है रीमा दौड़ती हुई उसके घर पहुँची देखा तो विवेक और उसकी माँ घर पर थें नन्ही दीपाली को उसनें गोंद में उठाकर खूब प्यार किया फिर विवेक को देखा वो बिस्तर पर लेटे हुए मुस्कुरा रहा था। रीमा ने विवेक को दवाई खिलाई और चाय बना कर ले आई। उसने माँ और विवेक को चाय पिलाई माँ को भी रीमा का व्यवहार खूब अच्छा लगा फिर रीमा के जातें ही माँ बोली बेटा मै मानती हूँ रूपा को तू बहुत प्यार करता है लेकिन आज तुझे और दीपाली को देखने में वो असमर्थ है। दीपाली को भी एक माँ चाहिए बेटा!
उस रात विवेक सो नही पाया क्या वो ठीक कर रहा है क्या ये रूपा के साथ सही न्याय होगा?
लेकिन इसी सोच विचार में ६ महीने और गुजर गए और अंततः विवेक ने भी रीमा से विवाह करने का फैसला कर लिया। और दो महीने बाद विवेक और रीमा का विवाह हो गया। रीमा एक बहुत समझदार स्त्री थी आते ही उसने माँ, विवेक और नन्ही दीपाली की पूरी जिम्मेदारी संभाल ली थी। देखते ही देखते दोनों के विवाह को एक वर्ष बीत गए कि एक दिन रूपा के हाथ पैरों में हरकत होने लगी और उसे होश आ गया। जब विवेक को ये पता चला तो वो खुशी खुशी अस्पताल चल पड़ा और आतें ही उसनें रूपा का माथा चूम लिया। दोनों बहुत खुश थे कि तभी माँ जी भी आ गई और चुपचाप रूपा को देखती रही। विवेक भी समझ गया कि माँ क्या सोच रहीं है। माँ ने सिर्फ इतना कहा कि बेटा जो भी करना समझदारी से करना। रूपा कुछ समझ नहीं पाई। विवेक भी कुछ देर बाद चला गया।
बाद में उसे अस्पताल की नर्सो ने बताया कि विवेक ने दूसरी शादी कल ली थी, सुन कर पहले तो रीमा को बेहद धक्का लगा लेकिन फिर उसनें मन में सोचा यही है जिन्दगी कोई यहाँ किसी के लिए नहीं ठहरता फिर चाहे वो पति बेटा बेटी या पत्नी कोई भी हो।
फिर उसकी आँखों में आसूं भर आए।

(समाप्त)
समय- 5:24- बुधवार

© Deepa🌿💙