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क्युं हम योगी न बन पाऐ
ऐक थे गोरखनाथ और ऐक है, योगी आदित्यनाथ,
याद रहे पर सभी को, महाकाल हे शिव पारसनाथ
बचपन मे ही छोडा जिसने घर, हुआ मठ प्रमुख
त्याग तपस्या के बल पे बदला हवा का रुख
कर्म और योग के अद्भुत प्रयास से जो बने कर्मयोगी
देख उसको जग उठे हैं, कई विलासी भोगी
संस्कार बनते समय नहीं लगता,
जब सवंर जाऐ बचपन और जवानी
कहां बन पाए कोई योगी,
गर जीवन मे हो कुसंगो के साथ खींचातानी
ऐक योगी से ही हो रही इतनी चहल पहल
अदम्य साहस को देख,
कहीं पिछे न रह जाओ ,करने पे मुल्यों को अमल
असुर जब दिल से कहे, हो रहा अब असर
देवता तब बने, कटे सभी अहंकार का सर
राह दिल से जो चुनलिया, हुआ तभी पुराने का विनाश
नया बनाने चल पडा,
अभयदान पाए बना वो देश का खास
भ्रम को नाश और सपने को आकार जो देता,
कहते उसे कर्मयोगी हैं
मुल्यों को जो जीवन मे पुजे,
राजयुक्त वो राजयोगी हैं
समय जवानी का जो ऐसे ही बीत गया,
कहां कोई बन पाता योगी है
पहाडों से बह रही जो मुल्यों की अमृत धारा
कोने कोने मे हो उसिसे जागृति,
आगाज करें एक नुतन परम्परा

© Birendra Debta