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"समय से परे एक इश्क़"-भाग-2
दीपाली की नींद खुली तो उसने अपने आप को दो सैनिकों के सामने पाया। दोनों उससे पूछ रहे थे कि वो यहां तक कैसे आई क्यों आईं? दीपाली ने एक मनगढ़ंत कहानी उन्हें सुनाई कि वो महाराज को गाना सुनाना चाहतीं हैं और बहुत दूर से आई है। काफी मुनहार करने के बाद दोनों मान गए और उसे महराज के पास ले जाने के लिए राजी हो गए। दीपाली ने चैन की सांस ली और मन ही मन मुस्कुराते हुए उनके साथ चल पड़ी।अन्दर महराज अपने विशाल सिंहासन पर अपने शान ओ शौकत से बैठे थे। सैनिकों ने उन्हें पूरी बात बताई तो महराज ने मुस्कुराते हुए गाना सुनाने की आज्ञा दी।इधर महराज को देखते ही दीपाली के होश फाख्ता हो गए ऊंचा लंबा कद मस्तक तक भरे घुंघराले बाल चौड़ा सीना और गौर वर्ण पर सजतीं काली मूंछें उफ़ महराज तो बड़े हैंडसम है दीपाली ने मन में सोचा तभी महराज ने उसकी तंद्रा तोड़ी क्या हुआ सुनाइये गीत जो आप सुनाने आई है तो दीपाली ने गला साफ किया और गाने लगी "मोहे पनघट पर नंद लाल छेड़ गयों रे मोरी नाजुक कलाईयां मरोड़ गयों रे"महराज और दरबार में बैठे सभी लोग मंत्रमुग्ध उसके गीत को सुनते रहे दरअसल दीपाली बहुत सुंदर गाना गाती थी और आज उसका यही गुण काम आया था। गाना पूरा होने के बाद महराज ने दीपाली को बतौर पारितोषिक अपना बहुमूल्य हार दिया जिसे दीपाली ने सर झुका कर सहर्ष स्वीकार कर लिया। फिर उसने महराज से आज्ञा ली जाने की तो महराज ने उससे कहा आज से आप मेरे महल की गायिका है और रोज एक गीत आप सांझ के समय हमारे दरबार में सुनाएगी। दीपाली खुशी खुशी राज़ी हो गई और उसने महराज से विदा मांगी और महल से बाहर आ गई।बाहर आते ही उसने घड़ी पर अपने समय का टाइम सेट किया और कुछ ही क्षणों में वापस आ गई। आते ही उसने अपने भाई को सब कुछ बताया सुनकर दीपक भी बहुत खुश हुआ। दीपाली ने अपनी मां को सब कुछ बताया और फिर कुछ ही देर में मां ने डिनर लगा दिया। रात को खाना खाने के बाद जब दीपाली अपने कमरे में गई तो उसे नींद ही नहीं आ रही थी।
महराज के शानदार व्यक्तिव ने उसकी आंखों से नींद उड़ा दी थी। आगे क्या होता है जानने के लिए इसका अगला भाग अवश्य पढ़ें।
लेखन समय-3:48-दिनाक-19.4.24
शुक्रवार


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